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Thursday, May 3, 2012

राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास


देश (भारत) की आजादी के पूर्व राजस्थान १९ देशी रियासतों में बंटा था, जिसमें अजमेर केन्द्रशासित प्रदेश था। इन रियासतों में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और शाहपुरा में गुहिल, जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़ में राठौड़ कोटा और बूंदी में हाड़ा चौहान, सिरोही में देवड़ा चौहान, जयपुर और अलवर में कछवाहा, जैसलमेर और करौली में यदुवंशी एवं झालावाड़ में झाला राजपूत राज्य करते थे। टोंक में मुसलमानों एवं भरतपुर तथा धौलपुर में जाटों का राज्य था। इनके अलावा कुशलगढ़ और लावा की चीफशिप थी। कुशलगढ़ का क्षेत्रफल ३४० वर्ग मील था। वहां के शासक राठौड़ थे। लावा का क्षेत्रफल केवल २० वर्ग मील था। वहां के शासक नारुका थे।

राजस्थान के शौर्य का वर्णन करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहाससार कर्नल टॉड ने अपने ग्रंथ ""अनाल्स एण्ड अन्टीक्कीटीज आॅफ राजस्थान'' में कहा है, ""राजस्थान में ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपली न हो और ऐसा कोई नगर नहीं, जिसने अपना लियोजन डास पैदा नहीं किया हौ।'' टॉड का यह कथन न केवल प्राचीन और मध्ययुग में वरन् आधुनिक काल में भी इतिहास की कसौटी पर खरा उतरा है। ८वीं शताब्दी में जालौर में प्रतिहार और मेवाड़ के गहलोत अरब आक्रमण की बाढ़ को न रोकते तो सारे भारत में अरबों की तूती बोलती न आती। मेवाड़ के रावल जैतसिंह ने सन् १२३४ में दिल्ला के सुल्तान इल्तुतमिश और सन् १२३७ में सुल्तान बलबन को करारी हार देकर अपनी अपनी स्वतंत्रता की रक्षी की। सन् १३०३ में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने एक विशान सेना के साथ मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर हमला किया। चित्तौड़ के इस प्रथम शाके हजारों वीर वीरांगनाओं ने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने आपको न्यौछावर कर दिया, पर खिलजी किले पर अधिकार करने में सफल हो गए। इस हार का बदला सन् १३२६ में राणा हमीर ने चुकाया, जबकि उसने खिलजी के नुमाइन्दे मालदेव चौहान और दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की विशाल सेना को हराकर चित्तौड़ पर पुन: मेवाड़ की पताका फहराई।
१५वीं शताब्दी के मध्य में मेवाड़ का राणा कुम्भा उत्तरी भारत में एक प्रचण्ड शक्ति के रुप में उभरा। उसने गुजरात, मालवा, नागौर के सुल्तान को अलग-अलग और संयुक्त रुप से हराया। सन् १५०८ में राणा सांगा ने मेवाड़ की बागडोर संभाली। सांगा बड़ा महत्वाकांक्षी था। वह दिल्ली में अपनी पताका फहराना चाहता था। समूचे राजस्थान पर अपना वर्च स्थापित करने के बाद उसने दिल्ली, गुजरात और मालवा के सुल्तानों को संयुक्त रुप से हराया। सन् १५२६ में फरगाना के शासक उमर शेख मिर्जा के पुत्र बाबर ने पानीपत के मैदान में सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर अधिकर कर लिया। सांगा को विश्वास था कि बाबर भी अपने पूर्वज तैमूरलंग की भांति लूट-खसोट कर अपने वतन लौट जाएगा, पर सांगा का अनुमार गलत साबित हुआ। यही नहीं, बाबर सांगा से मुकाबला करने के लिए आगरा से रवाना हुआ। सांगा ने भी समूचे राजस्थान की सेना के साथ आगरा की ओर कूच किया। बाबर और सांगा की पहली भिडन्त बयाना के निकट हुई। बाबर की सेना भाग खड़ी हुई। बाबर ने सांगा से सुलह करनी चाही, पर सांगा आगे बढ़ताही गया। तारीख १७ मार्च, १५२७ को खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ। मुगल सेना के एक बार तो छक्के छूट गए। किंतु इसी बीच दुर्भाग्य से सांगा के सिर पर एक तीर आकर लगा जिससे वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। उसे युद्ध क्षेत्र से हटा कर बसवा ले जाया गया। इस दुर्घटना के साथ ही लड़ाई का पासा पलट गया, बाबर विजयी हुआ। वह भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डालने में सफल हुआ, स्पष्ट है कि मुगल साम्राज्य की स्थापना में पानीपत का नहीं वरन् खानवा का युद्ध निर्णायक था।
खानवा के युद्ध ने मेवाड़ की कमर तोड़ दी। यही नहीं वह वर्षो तक ग्रह कलह का शिकार बना रहा। अब राजस्थान का नेतृत्व मेवाड़ शिशोदियों के हाथ से निकल कर मारवाड़ के राठौड़ मालदेव के हाथ में चला गया। मालदेव सन् १५५३ में मारवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने मारवाड़ राज्य का भारी विस्तार किया। इस समय शेरशाह सूरी ने बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। शेरशाह ने राजस्थान में मालदेव की बढ़ती हुई शक्ति देखकर मारवाड़ के निकट सुमेल गांव में शेरशाह की सेना के ऐसे दाँत खट्टे किये कि एक बार तो शेरशाह का हौसला पस्त हो गया। परन्तु अन्त में शेरशाह छल-कपट से जीत गया। फिर भी मारवाड़ से लौटते हुए यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा - ""खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता।''
सन् १५५५ में हुमायूं ने दिल्ली पर पुन: अधिकार कर लिया। पर वह अगले ही वर्ष मर गया। उसके स्थान पर अकबर बादशाह बना। उसने मारवाड़ पर आक्रमण कर अजमेर, जैतारण, मेड़ता आदि इलाके छीन लिए। मालदेव स्वयं १५६२ में मर गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् मारवाड़ का सितारा अस्त हो गया। सन् १५८७ में मालदेव के पुत्र मौटा राजा उदयसिंह ने अपनी लड़की मानाबाई का विवाह शहजादे सलीम से कर अपने आपको पूर्णरुप से मुगल साम्राज्य को समर्पित कर दिया। आमेर के कछवाहा, बीकानेर के राठौड़, जैसलमेर के भाटी, बूंदी के हाड़ा, सिरोही के देवड़ा और अन्य छोटे राज्य इससे पूर्व ही मुगलों की अधीनता स्वीकार कर चुके थे।
अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का राणा प्रताप बाधक बना रहा। अकबर ने सन् १५७६ से १५८६ तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही गहलोत राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे नर-पुंगवों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए।
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिहं ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार १०० वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। मुगल काल में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, और राजस्थान के अन्य राजाओं ने मुगलों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मुगल साम्राज्यों के विस्तार और रक्षा में महत्वपूर्ण भाग अदा किया। साम्राज्य की उत्कृष्ट सेवाओं के फलस्वरुप उन्होंने मुगल दरबार में बड़े-बड़े औहदें, जागीरें और सम्मान प्राप्त किये।

राजस्थान के मेले एक नजर

राजस्थान के मेले एक नजर



1 राजस्थान का सबसे रगीन मेला - पुष्कर मे
2 बाणगंगा मेला - जयपुर में
3 बोहरा समाज का उर्स - गलियाकोट (डूगरपूर) यहां पर आलिमशाह की दरगाह पर उर्स भरता है।
4 जैनियो का सबसे बडा मेला -महावीर जी का मेला (हिडोन, करौली)
5 मुस्लिमो का सबसे बडा उर्स - ख्वाजा साहब का उर्स (अजमेर)
6 सिखो का सबसे बडा मेला - साहवा (चुरू)
6 आदिवासियो का सबसे बडा मेला - बेणेश्वर मेला(नवाटपुर ,डंूगरपुर) है।यह माघपूर्णिमा को लगता है।
इस मेले में आदिवासियो का परिचय सम्मेलन भी होता है।
7 मेरवाडा का सबसे बडा मेला -पुष्कर मेला हैं।
8 जांगल प्रदेश का सबसे बडा मेला - कोलायत है।
9 हाडौती प्रदेश का सबसे बडा मेला - सीताबाडी मेला (कोटा) है।
10 हिन्दू जैन सद्भाव का सबसे बडा मेला -ऋषभदेव का मेला है।
11 मत्स्य प्रदेश का सबसे बडा मेला -भतृहरि का मेला (अलवर) है।
12 साम्प्रदायिक सद्भाव का सबसे बडा मेला रामदेव जी का मेला है।
13 लालदास जी का मेला अलवर मे लगता है।
14 पीर का उर्स जालौर मे प्रसि़द्व है।
15 नागौर में हमीदुदीन नागौरी की दरगाह हैं जिसे अटारगढ की दरगाह भी कहते है।
16 घोटिया अम्बा जी का मेला बुडवा (चितौड) मे लगता है
17 राणी सती मेला झुन्झुनु मे लगता है।
18 शिवगंगा में गोतम जी का मेला लगता है।
19 चार भुजा मेला उदयपुर मे लगता है।
20 मातृकुण्डिया मेला रश्मि गांव चितौड में लगता है।
21 केसरियानाथ जी का मेला धुलेव (उदयपुर) मे लगता है।
22 महाशिवरात्रि मेला सवाईमाधोपुर में लगता है।
23 डिग्गी कल्याण जी का मेला टोंक में लगता है। यह कुष्ठ रोग निवारक देवता है।
24 शीतला माता का मेला चाकसू (जयपुर ) मे लगता है। शीतला माता को सेढल माता भी कहते है।

TOURISM IN RAJASTHAN



राजस्थान पर्यटन

गुलाबी नगर जयपुर

भारत के एतिहासिक एवं सांस्कृतिक राज्यों में राजस्थान अग्रणीय है। प्राचीन सभ्यता में डूबे हुए शहर की विविधता हर रूप में उभर कर आती है। राजस्थान की राजधानी जयपुर एक प्राचीन शहर है जो गुलाबी शहर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसकी पश्चिम ओर स्थित है थार मरुभूमि जो दुनिया के मशहूर रेगिस्तानों में से एक है।


आकर्षक पर्यटन स्थल
शहर में बहुत से पर्यटन आकर्षण हैं, जैसे जंतर मंतर, जयपुर, हवा महल, सिटी पैलेस, गोविंद देवजी का मंदिर, बी एम बिड़ला तारामण्डल, आमेर का किला, जयगढ़ दुर्ग आदि। जयपुर के रौनक भरे बाजारों में दुकानें रंग बिरंगे सामानों से भरी हैं , जिनमें हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त वनस्पति रंगों से बने वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान,राजस्थानी चित्रकला के नमूने, नागरा-मोजरी जूतियाँ, ब्लू पॉटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफ़ेद संगमरमर की मूर्तियां आदि शामिल हैं। प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ के साथ लगे बाजार हैं ।
सिटी पैलेस
राजस्थानी व मुगल शैलियों की मिश्रित रचना एक पूर्व शाही निवास जो पुराने शहर के बीचोंबीच है। भूरे संगमरमर के स्तंभों पर टिके नक्काशीदार मेहराब, सोने व रंगीन पत्थरों की फूलों वाली आकृतियों ले अलंकृत है। संगमरमर के दो नक्काशीदार हाथी प्रवेश द्वार पर प्रहरी की तरह खड़े है। जिन परिवारों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजाओं की सेवा की है। वे लोग गाइड के रूप में कार्य करते है। पैलेस में एक संग्राहलय है जिसमें राजस्थानी पोशाकों व मुगलों तथा राजपूतों के हथियार का बढ़िया संग्रह हैं। इसमें विभिन्न रंगों व आकारों वाली तराशी हुई मूंठ की तलवारें भी हैं, जिनमें से कई मीनाकारी के जड़ऊ काम व जवाहरातों से अलंकृत है तथा शानदार जड़ी हुई म्यानों से युक्त हैं। महल में एक कलादीर्घा भी हैं जिसमें लघुचित्रों, कालीनों, शाही साजों सामान और अरबी, फारसी, लेटिन व संस्कृत में दुर्लभ खगोल विज्ञान की रचनाओं का उत्कृष्ट संग्रह है जो सवाई जयसिंह द्वितीय ने विस्तृत रूप से खगोल विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्राप्त की थी।

जंतर मंतर
एक पत्थर की वेधशाला। यह जयसिंह की पाँच वेधशालाओं में से सबसे विशाल है। इसके जटिल यंत्र, इसका विन्यास व आकार वैज्ञानिक ढंग से तैयार किया गया है। यह विश्वप्रसिद्ध वेधशाला जिसे २०१२ में यूनेस्को ने विश्व धरोहरों में शामिल किया है, मध्ययुगीन भारत के खगोलविज्ञान की उपलब्धियों का जीवंत नमूना है! इनमें सबसे प्रभावशाली रामयंत्र है जिसका इस्तेमाल ऊंचाई नापने के लिए किया जाता है।

हवा महल
ईसवी सन् 1799 में निर्मित हवा महल राजपूत स्थापत्य का मुख्य प्रमाण चिन्ह। पुरानी नगरी की मुख्य गलियों के साथ यह पाँच मंजिली इमारत गुलाबी रंग में अर्धअष्टभुजाकार और परिष्कृत छतेदार बलुए पत्थर की खिड़कियों से सुसज्जित है। शाही स्त्रियां शहर का दैनिक जीवन व शहर के जुलूस देख सकें इसी उद्देश्य से इमारत की रचना की गई थी।

गोविंद देवजी का मंदिर
भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध, बिना शिखर का मंदिर। यह चन्द्रमहल के पूर्व में बने जन-निवास बगीचे के मध्य अहाते में स्थित है। संरक्षक देवता गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था।

सरगासूली-
(ईसर लाट) - त्रिपोलिया बाजार के पश्चिमी किनारे पर उच्च मीनारनुमा इमारत जिसका निर्माण ईसवी सन् 1749 में सवाई ईश्वरी सिंह ने अपनी मराठा विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।

रामनिवास बाग
एक चिड़ियाघर, पौधघर, वनस्पति संग्रहालय से युक्त एक हरा भरा विस्तृत बाग, जहाँ खेल का प्रसिद्ध क्रिकेट मैदान भी है। बाढ राहत परियोजना के अंतर्गत ईसवी सन् 1865 में सवाई राम सिंह द्वितीय ने इसे बनवाया था। सर विंस्टन जैकब द्वारा रूपांकित, अल्बर्ट हाल जो भारतीय वास्तुकला शैली का परिष्कृत नमूना है, जिसे बाद में उत्कृष्ट मूर्तियों, चित्रों, सज्जित बर्तनों, प्राकृतिक विज्ञान के नमूनों, इजिप्ट की एक ममी और फारस के प्रख्यात कालीनों से सुसज्जित कर खोला गया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेक्षागृह के साथ रवीन्द्र मंच, एक आधुनिक कलादीर्घा व एक खुला थियेटर भी इसमें बनाया गया हैं।
गुड़िया घर
पुलिस स्मारक के पास मूक बधिर विद्यालय के अहाते में विभिन्न देशों की प्यारी गुड़ियाँ यहाँ प्रदर्शित हैं (समयः 12 बजे से सात बजे तक)

बी एम बिड़ला तारामण्डल
(समयः 12 बजे से सात बजे तक)- अपने आधुनिक कम्पयूटरयुक्त प्रक्षेपण व्यवस्था के साथ इस ताराघर में श्रव्य व दृश्य शिक्षा व मनोरंजनों के साधनों की अनेखी सुविधा उपलब्घ है। विद्यालयों के दलों के लिये रियायत उपलब्ध है। प्रत्येक महीने के आखिरी बुघवार को यह बंद रहता है।

गलताजी
एक प्राचीन तार्थस्थल, निचली पहाड़ियों के बीच बगीचों से परे स्थित। मंदिर, मंडप और पवित्र कुंडो के साथ हरियाली युक्त प्राकृतिक दृश्य इसे आनन्ददायक स्थल बना देते हैं। दीवान कृपाराम द्वारा निर्मित उच्चतम चोटी के शिखर पर बना सूर्य देवता का छोटा मंदिर शहर के सारे स्थानों से दिखाई पड़ता है।

जैन मंदिर
आगरा मार्ग पर बने इस उत्कृष्ट जैन मंदिर की दीवारों पर जयपुर शैली में उन्नीसवीं सदी के अत्यधिक सुंदर चित्र बने हैं।

मोती डूंगरी और लक्ष्मी नारायण मंदिर
मोती डूंगरी एक निजी पहाड़ी ऊंचाई पर बना किला है जो स्कॉटलैण्ड के किले की तरह निर्मित है। कुछ वर्षों पहले, पहाड़ी पादगिरी पर बना गणेश मंदिर और अद्भुत लक्ष्मी नारायण मंदिर भी उल्लेखनीय है।

स्टैच्यू सर्किल
चक्कर के मध्य सवाई जयसिंह का स्टैच्यू बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से बना हुआ है। इसे जयपुर के संस्थापक को श्रद्धांजलि देने के लिए नई क्षेत्रीय योजना के अंतर्गत बनाया गया है। इस में स्थापित सवाई जयसिंह की भव्यमूर्ति के मूर्तिशिल्पी स्व.महेंद्र कुमार दास हैं।

अन्य स्थल
आमेर मार्ग पर रामगढ़ मार्ग के चौराहे के पास रानियों की याद में बनी आकर्षक महारानी की कई छतरियां है। मानसागर झील के मध्य, सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा निर्मित जल महल, एक मनोहारी स्थल है। परिष्कृत मंदिरों व बगीचों वाले कनक वृंदावन भवन की पुरातन पूर्णता को विगत समय में पुनर्निर्मित किया गया है। इस सड़क के पश्चिम में गैटोर में शाही शमशान घाट है जिसमें जयपुर के सवाई ईश्वरी सिंह के सिवाय समस्त शासकों के भव्य स्मारक हैं। बारीक नक्काशी व लालित्यपूर्ण आकार से युक्त सवाई जयसिंह द्वितीय की बहुत ही प्रभावशाली छतरी है। प्राकृतिक पृष्ठभूमि से युक्त बगीचे आगरा मार्ग पर दीवारों से घिरे शहर के दक्षिण पूर्वी कोने पर घाटी में फैले हुए हैं।

गैटोर
सिसोदिया रानी के बाग में फव्वारों, पानी की नहरों, व चित्रित मंडपों के साथ पंक्तिबद्ध बहुस्तरीय बगीचे हैं व बैठकों के कमरे हैं। अन्य बगीचों में, विद्याधर का बाग बहुत ही अच्छे ढ़ग से संरक्षित बाग है, इसमें घने वृक्ष, बहता पानी व खुले मंडप हैं। इसे शहर के नियोजक विद्याधर ने निर्मित किया था।

आमेर
यह कभी सात सदी तक ढूंडार के पुराने राज्य के कच्छवाहा शासकों की राजधानी थी। आमेर और शीला माता मंदिर - लगभग दो शताब्दी पूर्व राजा मान सिंह, मिर्जा राजा जयसिंह और सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित महलों, मंडपों, बगीचों और मंदिरों का एक आकर्षक भवन है। मावठा झील के शान्त पानी से यह महल सीधा उभरता है और वहाँ सुगम रास्ते द्वारा पहुंचा जा सकता है। सिंह पोल और जलेब चौक तक अकसर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं, एक शिला माता के मंदिर की ओर जाती है और दूसरी महल के भवन की ओर। यहां स्थापित करने के लिए राजा मानसिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी। एक दर्शनीय स्तंभों वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दोमंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के प्रांगण में है। गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और गचकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें । मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है।


पुराना शहर - कभी राजाओं, हस्तशिल्पों व आम जनता का आवास आमेर का पुराना क़स्बा अब खंडहर बन गया है। आकर्षक ढंग से नक्काशीदार व सुनियोजित जगत शिरोमणि मंदिर, मीराबाई से जुड़ा एक कृष्ण मंदिर, नरसिंहजी का पुराना मंदिर व अच्छे ढंग से बना सीढ़ियों वाला कुआँ, पन्ना मियां का कुण्ड समृद्ध अतीत के अवशेष हैं ।

जयगढ़ किला
मध्ययुगीन भारत के कुछ सैनिक इमारतों में से एक। महलों, बगीचों, टांकियों, अन्य भन्डार, शस्त्रागार, एक सुनोयोजित तोप ढलाई-घर, अनेक मंदिर, एक लंबा बुर्ज और एक विशालकाय तोप - जयबाण जो देश की सबसे बड़ी तोपों में से एक है। जयगढ़ के फैले हुए परकोटे, बुर्ज और प्रवेश द्वार पश्चिमी द्वार क्षितिज को छूते हैं. नाहरगढः जयगढ की पहाड़ियों के पीछे स्थित गुलाबी शहर का पहरेदार है - नाहरगढ़ किला। यद्यपि इसका बहुत कुछ हिस्सा ध्वस्त हो गया है, फिर भी सवाई मान सिंह द्वितीय व सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा बनाई मनोहर इमारतें किले की रौनक बढाती हैं सांगानेर (१२ किलोमीटर) - यह टोंक जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। इसके ध्वस्त महलों के अतिरिक्त, सांगानेर के उत्कृष्ट नक्काशीदार जैन मंदिर है। दो त्रिपोलिया (तीन मुख्य द्वार ) के अवशेषो द्वारा नगर में प्रवेश किया जाता है।

MAJOR FESTIVALS OF RAJASTHAN

राजस्थान के मुख्य समारोह



• मेवाड सामारोह - उदयपुर मे
• गणगौर सामारोह -जयपुर
• मारवाड सामारोह -जोधपुर में
• तीज सामारोह -जयपुर
• मरू सामारोह -जैसलमेर
• दशहरा सामारोह -कोटा
• हाथी सामारोह -जयपुर
• बैलून महोत्सव -बाडमेर
• थार महोत्सव - बाडमेर
• ऊंट महोत्सव - बीकानेर

Saturday, April 28, 2012

Folk music and Dances of Rajasthan




Folk music and Dances of Rajasthan

Folk music and Dances of Rajasthan

The people of Rajasthan live life to the hilt. After hard work in the harsh desert sun and the rocky terrain whenever they take time off they let themselves go in gay abandon. There is dancing, singing, drama, devotional music and puppet shows and other community festivities which transform the hardworking Rajasthani into a fun-loving and carefree individual. Each region has its own folk entertainment, the dance styles differ as do the songs. Interestingly enough, even the musical instruments are different.

Of considerable significance are the devotional songs and the communities who render these songs. Professional performers like the Bhaats, Dholis, Mirasis, Nats, Bhopas and Bhands are omnipresent across the state. They are patronised by the villagers who participate actively in the shows put up by these travelling entertainers. Some of the better known forms of entertainment are:

Ghoomar Dance: This is basically a community dance for women and performed on. auspicious occasions. Derived from the word ghoomna, piroutte, this is a very simple dance where the ladies move gently, gracefully in circles.

Gait Ghoomar: This is one of the many dance-forms of the Bhil tribals. Performed during Holi festival, this is among a few performances where both men and women dance together.

Gait: Another Holi dance but performed only by men. This becomes Dandia Gair in Jodhpur and Geendad in Shekhawati.

Chart Dance: This is popular in the Kisherigarh region and involves dancing with a chari, or pot, on one’s head. A lighted lamp is then placed on the pot.

Kachhi Ghodi: This is a dance performed on dummy horses. Men in elaborate costumes ride the equally well decorated dummy horses. Holding naked swords, these dancers move rhythmically to the beating of drums and fifes. A singer narrates the exploits of the Bavaria bandits of Shekhawati.

Fire Dance: The Jasnathis of Bikaner and Chum are renowned for their tantric powers and this dance is in keeping with their lifestyle. A large ground is prepared with live wood and charcoal where the Jasnathi men and boys jump on to the fire to the accompaniment of drum beats. The music gradually rises in tempo and reaches a crescendo, the dancers seem to be in a trance like state. Drum Dance: This is a professional dance-form from Jalore. Five men with huge drums round their necks, some with huge cymbals accompany a dancer who holds a naked sword in his mouth and performs vigorously by twirling three painted sticks.

Teerah Taali: The Kamad community of Pokhran and Deedwana perform this dance in honour of theft deity, Baba Ramdeo. A rather unusual performance where the men play a four-stringed instrument called a chau-tara and the women sit with dozens of manjeeras, or cymbals, tied on all over their bodies and strike them with the ones they hold in their hands. Sometimes, the women also hold a sword between their teeth or place pots with lighted lamps on their heads.

Kathputli: Puppet plays based on popular legends are performed by skilled puppeteers. Displaying his skill in making the puppets’ act and dance, the puppeteer is accompanied by a woman, usually his wife, who plays the dholak, or drum and sings the ballad.

Pabuji Ki Phach: A 14th century folk hero, Pabuji is revered by the Bhopa community. The phad, or scroll, which is about 10 metres long, highlights the life and heroic deed of Pabuji. The Bhopas are invited by villagers to perform in their areas during times of sickness and misfortune. The ballad is sung by the Bhopa as he plays the Ravan-hattha and he is joined by his wife who holds a lamp and illuminates the relevant portions at appropriate points.

Maand: Rajasthan’s most sophisticated style of folk music and has come a long way from the time it was only sung in royal courts, in praise of the Rajput rulers.

Professional singers still sing the haunting ballads of Moomal Mahendra, Dhola-Maru and other legendary lovers and heroes.

List of singers and performers also includes the Mirasis and Jogis of Mewat, Manganiyars and Langas, Kanjars, Banjaras and Dholies. Performances like the Kuchamani Khayal, Maach, Tamasha, Rammat, Nautanki and Raasleela are no less popular. The musical instruments of Rajasthan are simple but quite unusual. Handcrafted by the musicians themselves they are rather unique and include instruments like the Morchang, Naad, Sarangi, Kamayacha, Rawanhattha, Algoza, Khartal, Poongi, Bankia and Da There are dozens of other instruments which are exclusive to Rajasthan only.

It is a rather difficult task to list all the different types of music, dance and entertainment that can be found in Rajasthan. The range is mindboggling.

Tuesday, April 17, 2012

Distribution of Population, Decadal Growth Rate, Sex-Ratio and Density of population

Distribution of Population, Decadal Growth Rate, Sex-Ratio and Density of population 2011
District Code State/ District Population - 2011 Percentage Decadal Growth Rate of Population Sex Ratio (No. of Females per 1000 Males) Population density per Sq. Km
Person Male Female 2001-11 2011 2011
1 2 3 4 5 7 9 11
08 Rajasthan 68621012 35620086 33000926 21.44 926 201
01 Ganganagar 1969520 1043730 925790 10.06 887 179
02 Hanumangarh 1779650 933660 845990 17.24 906 184
03 Bikaner 2367745 1243916 1123829 24.48 903 78
04 Churu 2041172 1053375 987797 20.35 938 148
05 Jhunjhunun 2139658 1097390 1042268 11.81 950 361
06 Alwar 3671999 1938929 1733070 22.75 894 438
07 Bharatpur 2549121 1357896 1191225 21.39 877 503
08 Dhaulpur 1207293 654344 552949 22.78 845 398
09 Karauli 1458459 784943 673516 20.94 858 264
10 Sawai Madhopur 1338114 706558 631556 19.79 894 297
11 Dausa 1637226 859821 777405 23.75 904 476
12 Jaipur 6663971 3490787 3173184 26.91 909 598
13 Sikar 2677737 1377120 1300617 17.04 944 346
14 Nagaur 3309234 1698760 1610474 19.25 948 187
15 Jodhpur 3685681 1924326 1761355 27.69 915 161
16 Jaisalmer 672008 363346 308662 32.22 849 17
17 Barmer 2604453 1370494 1233959 32.55 900 92
18 Jalor 1830151 937918 892233 26.31 951 172
19 Sirohi 1037185 535115 502070 21.86 938 202
20 Pali 2038533 1025895 1012638 11.99 987 165
21 Ajmer 2584913 1325911 1259002 18.66 950 305
22 Tonk 1421711 729390 692321 17.33 949 198
23 Bundi 1113725 579385 534340 15.7 922 193
24 Bhilwara 2410459 1224483 1185976 19.27 969 230
25 Rajsamand 1158283 582670 575613 17.89 988 302
26 Dungarpur 1388906 698069 690837 25.39 990 368
27 Banswara 1798194 908755 889439 26.58 979 399
28 Chittaurgarh 1544392 784054 760338 16.09 970 193
29 Kota 1950491 1023153 927338 24.34 906 374
30 Baran 1223921 635495 588426 19.82 926 175
31 Jhalawar 1411327 725667 685660 19.57 945 227
32 Udaipur 3067549 1566781 1500768 23.63 958 242
33 Pratapgarh* 868231 437950 430281 22.84 982 211

Districts arranged in descending order of Sex Ratio: 2011


Districts arranged in descending order of Sex Ratio: 2011



Rank District Sex- ratio (Number of Females per 1000 Males)
1 Dungarpur 990
2 Rajsamand 988
3 Pali 987
4 Pratapgarh* 982
5 Banswara 979
6 Chittaurgarh 970
7 Bhilwara 969
8 Udaipur 958
9 Jalor 951
10 Jhunjhunun 950
11 Ajmer 950
12 Tonk 949
13 Nagaur 948
14 Jhalawar 945
15 Sikar 944
16 Sirohi 938
17 Churu 938
18 Baran 926
19 Bundi 922
20 Jodhpur 915
21 Jaipur 909
22 Kota 906
23 Hanumangarh 906
24 Dausa 904
25 Bikaner 903
26 Barmer 900
27 Sawai Madhopur 894
28 Alwar 894
29 Ganganagar 887
30 Bharatpur 877
31 Karauli 858
32 Jaisalmer 849
33 Dhaulpur 845

SEX RATIO OF RAJASTHAN :- A COMPARATIVE STUDY


SEX RATIO OF RAJASTHAN :- A COMPARATIVE STUDY
Sex Ratio (females per 1,000 males): 1901-2011
District Code State/ District Sex-Ratio Since (Number of females per 1000 males)
1901 1911 1921 1931 1941 1951 1961 1971 1981 1991 2001 2011
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
08 Rajasthan 905 908 896 907 906 921 908 911 919 910 921 926
01 Ganganagar 853 818 857 797 814 828 843 863 859 865 873 887
02 Hanumangarh 853 818 857 797 814 848 840 887 892 891 894 906
03 Bikaner 918 907 891 895 869 920 916 908 899 891 896 903
04 Churu 932 922 926 924 908 945 936 946 953 937 948 938
05 Jhunjhunun 884 906 878 878 881 956 943 928 956 931 946 950
06 Alwar 922 914 884 892 890 896 892 887 892 880 886 894
07 Bharatpur 859 841 820 837 840 846 859 855 848 832 854 877
08 Dhaulpur 859 841 820 837 840 814 807 806 796 795 827 845
09 Karauli 870 869 859 873 884 865 854 848 853 840 855 858
10 Sawai Madhopur 870 869 859 873 884 893 884 878 880 870 889 894
11 Dausa 898 906 878 891 908 905 888 887 895 884 899 904
12 Jaipur 903 913 882 895 913 922 891 890 892 892 897 909
13 Sikar 877 899 886 913 920 972 964 961 963 946 951 944
14 Nagaur 914 928 900 920 912 936 945 942 958 942 947 948
15 Jodhpur 888 891 870 885 885 900 888 900 909 891 907 915
16 Jaisalmer 870 837 808 851 829 817 802 810 811 807 821 849
17 Barmer 874 880 860 891 873 868 868 887 904 891 892 900
18 Jalor 898 916 911 910 921 918 919 932 942 942 964 951
19 Sirohi 917 937 936 946 947 965 948 958 963 949 943 938
20 Pali 946 938 934 954 943 946 943 950 946 956 981 987
21 Ajmer 898 885 836 903 902 925 913 911 922 918 931 950
22 Tonk 915 905 911 915 903 925 910 909 928 923 934 949
23 Bundi 930 932 916 917 918 912 895 886 887 889 907 922
24 Bhilwara 920 931 940 942 943 934 906 909 941 945 962 969
25 Rajsamand 920 932 940 943 943 948 933 971 996 991 1000 988
26 Dungarpur 1000 1012 987 988 970 1003 991 1015 1045 995 1022 990
27 Banswara 1022 1025 1011 1009 996 983 972 979 985 969 974 979
28 Chittaurgarh 911 928 939 942 944 956 928 927 950 947 966 970
29 Kota 940 937 926 931 919 926 884 873 877 881 896 906
30 Baran 940 937 926 931 919 934 913 898 903 896 909 926
31 Jhalawar 932 927 920 920 928 954 928 919 926 918 926 945
32 Udaipur 920 932 940 943 943 967 943 951 971 956 969 958
33 Pratapgarh* 920 935 944 947 947 969 949 943 956 957 969 982